Wednesday, November 5, 2008

शायद कोई चमत्कार हो जाय
बाती और मट्टी के बीच बिना तेल के बन जाय आग का रिश्ता
फिर तेल बना रहे विवादों में
आलू प्याज दाल दलहन
सबकी किल्लत हो जाय
पर चकमक के पत्थर के दिनों की याद में
बहती नदियों और हरे पेडो की याद में जल उठे उम्मीद का दिया
शायद हो जाय इस्सा

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